Kannappa (कन्नप्पा की कहानी)
कहानी है थिन्नाडु (विष्णु मंचू) की एक आदिवासी योद्धा, जो बचपन में अपने मित्र की बलि होते देखता है और देवताओं से विश्वास खो बैठता है। देवियों को पत्थर मानने वाला यह बालक भगवान के अस्तित्व को नकार देता है। दूसरी ओर कैलाश पर पार्वती (काजल अग्रवाल) शिव (अक्षय कुमार) से प्रश्न करती हैं, क्या यह नास्तिक कभी आस्तिक बन पाएगा? शिव मुस्कुराते हैं क्योंकि उन्हें पता है, वह समय आएगा। थिन्नाडु की ज़िंदगी तब करवट लेती है जब वह राजकुमारी नेमली (प्रीति मुखुन्दन) से प्रेम कर बैठ है। नेमली की भक्ति और पिता के बलिदान के बाद थिन्नाडु भगवान को नहीं स्वीकारता और यहीं से कहानी उस मोड़ पर जाती है जहां थिन्नाडु की आत्मा का द्वार धीरे-धीरे खुलता है।Kannappa (कन्नप्पा का रिव्यू)
कन्नप्पा के रूप में शिव भक्तों के लिए निर्देशक मुकेश कुमार सिंह की ईमानदारी भरी कोशिश है, मगर निर्देशक को मुख्य विषय पर आने में समय लगता है। फिल्म का पहला भाग पात्रों और पृष्ठभूमि को स्थापित करने में वक्त लगा देता है। सेकंड हाफ में कहानी अपनी गति पकड़ती है और दर्शक थिन्नाडु की आध्यात्मिक जागरण की यात्रा के साथ जुड़ता है। क्लाइमैक्स भावनात्मक होने के साथ-साथ भक्ति भाव से भरा हुआ है, मगर पात्रों के चरित्र चित्रण में गहराई की कमी खलती है। शेल्टन चाउ की सिनेमैटोग्राफी में जंगल, नदी और पहाड़ों के मनोर दृश्य खिल उठते हैं। इस तरह की पौराणिक फिल्मों में वीएफएक्स को और संवरे हुए ढंग से पेश किया चाहिए। पौराणिक कथा के हिसाब से सेट और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन पर मेहनत की जानी चाहिए थी। अपनी गति पकड़ती है और दर्शक थिन्नाडु की आध्यात्मिक जागरण की यात्रा के साथ जुड़ता है। क्लाइमैक्स भावनात्मक होने के साथ-साथ भक्ति भाव से भरा हुआ है, मगर पात्रों के चरित्र चित्रण में गहराई की कमी खलती है। शेल्टन चाउ की सिनेमैटोग्राफी में जंगल, नदी और पहाड़ों के मनोरम दृश्य खिल उठते हैं। इस तरह की पौराणिक फिल्मों में वीएफएक्स को और संवरे हुए ढंग से पेश किया जाना चाहिए। पौराणिक कथा के हिसाब से सेट और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन पर मेहनत की जानी चाहिए थी। संवाद दमदार हैं। स्टीवन देवसी का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है, मगर संगीत के मामले में गाने कहानी व अवरुद्ध करते हैं। तीन घंटे 2 मिनट का रन टाइम ज्यादा हो जाता है।Read More : AI Oppo Reno 14 Pro Reno