Kannappa Movie Review: अक्षय कुमार ने शिव बनकर चलाया मैजिक

Kannappa Review: विष्णु मंचू की फिल्म 'कन्नप्पा' थिएटर्स में आ चुकी है और अगर आप मां और सितारे जमीन पर के बीच ये फिल्म देखना चाहते हैं, तो पहले रिव्यू पढ़ लीजिए और जानिए कि क्यों देखी जानी चाहिए? सैकनिल्क वेबसाइट के शुरुआती अनुमान के अनुसार, फिल्म ने आठवें दिन लगभग 35 लाख रुपये कमाए, जिससे सभी भाषाओं में इसकी कुल कमाई 30.55 करोड़ रुपये हो गई। पौराणिक कथाओं का दक्षिण फिल्म इंडस्ट्री में अपना क्रेज रहा है। साउथ में हमेशा से मायबाजार, सीतारामज कल्याणम, श्रीकृष्ण तुलाभरम नर्तनशाला, लव कुश, संपूर्ण रामायणम, शाकुंतलम जैसी फिल्में बनती रही हैं। इसी परंपरा का निर्वाह करती है मुकेश कुमार सिंह निर्देशित अक्षय कुमार, प्रभास, मोहनलाल, विष्णु मंचू जैसे जाने-माने सितारों के लाल लश्कर से सजी कन्नपा जो असल में नास्तिक से शिवभक्त बनने के रूपांतरण की यात्रा है।

Kannappa Movie

Kannappa (कन्नप्पा की कहानी)

कहानी है थिन्नाडु (विष्णु मंचू) की एक आदिवासी योद्धा, जो बचपन में अपने मित्र की बलि होते देखता है और देवताओं से विश्वास खो बैठता है। देवियों को पत्थर मानने वाला यह बालक भगवान के अस्तित्व को नकार देता है। दूसरी ओर कैलाश पर पार्वती (काजल अग्रवाल) शिव (अक्षय कुमार) से प्रश्न करती हैं, क्या यह नास्तिक कभी आस्तिक बन पाएगा? शिव मुस्कुराते हैं क्योंकि उन्हें पता है, वह समय आएगा। थिन्नाडु की ज़िंदगी तब करवट लेती है जब वह राजकुमारी नेमली (प्रीति मुखुन्दन) से प्रेम कर बैठ है। नेमली की भक्ति और पिता के बलिदान के बाद थिन्नाडु भगवान को नहीं स्वीकारता और यहीं से कहानी उस मोड़ पर जाती है जहां थिन्नाडु की आत्मा का द्वार धीरे-धीरे खुलता है।

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Kannappa (कन्नप्पा का रिव्यू)

कन्नप्पा के रूप में शिव भक्तों के लिए निर्देशक मुकेश कुमार सिंह की ईमानदारी भरी कोशिश है, मगर निर्देशक को मुख्य विषय पर आने में समय लगता है। फिल्म का पहला भाग पात्रों और पृष्ठभूमि को स्थापित करने में वक्त लगा देता है। सेकंड हाफ में कहानी अपनी गति पकड़ती है और दर्शक थिन्नाडु की आध्यात्मिक जागरण की यात्रा के साथ जुड़ता है। क्लाइमैक्स भावनात्मक होने के साथ-साथ भक्ति भाव से भरा हुआ है, मगर पात्रों के चरित्र चित्रण में गहराई की कमी खलती है। शेल्टन चाउ की सिनेमैटोग्राफी में जंगल, नदी और पहाड़ों के मनोर दृश्य खिल उठते हैं। इस तरह की पौराणिक फिल्मों में वीएफएक्स को और संवरे हुए ढंग से पेश किया चाहिए। पौराणिक कथा के हिसाब से सेट और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन पर मेहनत की जानी चाहिए थी। अपनी गति पकड़ती है और दर्शक थिन्नाडु की आध्यात्मिक जागरण की यात्रा के साथ जुड़ता है। क्लाइमैक्स भावनात्मक होने के साथ-साथ भक्ति भाव से भरा हुआ है, मगर पात्रों के चरित्र चित्रण में गहराई की कमी खलती है। शेल्टन चाउ की सिनेमैटोग्राफी में जंगल, नदी और पहाड़ों के मनोरम दृश्य खिल उठते हैं। इस तरह की पौराणिक फिल्मों में वीएफएक्स को और संवरे हुए ढंग से पेश किया जाना चाहिए। पौराणिक कथा के हिसाब से सेट और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन पर मेहनत की जानी चाहिए थी। संवाद दमदार हैं। स्टीवन देवसी का बैकग्राउंड स्कोर दमदार है, मगर संगीत के मामले में गाने कहानी व अवरुद्ध करते हैं। तीन घंटे 2 मिनट का रन टाइम ज्यादा हो जाता है।
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Kannappa (कन्नप्पा' के कलाकार)

थिन्नाडु के रूप में विष्णु मंचू ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश की है। एक्शन और क्लाइमैक्स के दृश्यों में वे जंचते हैं। भगवान शिव के रूप में अक्षय कुमार अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ आते हैं वहीं मां पार्वती के रोल में काजल अग्रवाल उनका साथ देती हैं। रुद्र के रूप में प्रभास के एंट्री फिल्म के उत्तरार्ध में होती है, मगर थिन्नाडु के नास्तिक से आस्तिक बनने की प्रक्रिया में तमाम सवालों का जवाब देती है। प्रीति मुखुन्दन अपने चरित्र के जरिए महज ग्लैमर एड कर पाती हैं। किराता की छोटी-सी भूमिका में मोहनलाल जमे हैं। अलबत्ता कंपाडु के रोल में मुकेश रिषि को बहुत कम स्क्रीन स्पेस मिला है। मोहन बाबू महादेव शास्त्री के रूप भरोसेमंद हैं, तो आर सरथकुमार नाथनाथुड्डु के चरित्र में याद रह जाते हैं। ब्रह्मानंद, मधु, शिव बालाजी, देवराज, ब्रह्माजी जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों को ठीक-ठीक अदा किया है।

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